तुलसी विवाह क्या है? महत्व और समय
तुलसी विवाह हिन्दू धर्म में एक खास रीति है जहाँ घर के मुख्य सदस्य तुलसी पौधे को आधिकारिक तौर पर ‘पति’ बनाते हैं। इसे करने से माना जाता है कि परिवार में शांति, स्वास्थ्य और समृद्धि आती है। सबसे अच्छा दिन चुनना ज़रूरी है; आमतौर पर कार्तिक माह की पूर्णिमा या शुक्ल पक्ष के तिथियों को शुभ माना जाता है। अगर आप शादी की तैयारी कर रहे हैं तो इस अनुष्ठान को पहले से ही तय करके रख सकते हैं, जिससे कार्यक्रम में कोई अड़चन न आए।
तुलसी पूजा की सही विधि
सबसे पहले तुलसी का पौधा साफ़ मिट्टी वाले बर्तन में लगाएँ। बर्तन को पानी से भरें और हल्का सा नमक मिलाएँ, इससे पौधे की जड़ मजबूत होगी। फिर पवित्र गंगा जल या शुद्ध जल डालें। पूजा के समय घर के मुख्य द्वार पर एक छोटी सी थाली रखें, उसमें तुलसी, चावल, फल और कुछ मिठाई रखें। भगवान विष्णु के मंत्र ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ दोहराते हुए तुलसी को पानी में डुबोएँ और धूप से सुखाएँ। इस प्रक्रिया को रोज़ दोहराने से पौधा स्वस्थ रहेगा और अनुष्ठान का प्रभाव भी बढ़ेगा।
तुलसी विवाह के प्रमुख चरण
जब सब तैयारी हो जाए, तो मुख्य समारोह शुरू होता है। सबसे पहले दूल्हा (तुलसी) को शुद्ध कपड़े में लपेटें और उसके सामने हल्दी का लेप लगाएँ। फिर माँ या किसी वरिष्ठ महिला से ‘आशीर्वाद’ लें। इसके बाद तुलसी को पवित्र वस्त्र में बाँध कर उसके हाथ में चावल, दाल और फल रखें—इसे ‘अभिषेक’ कहा जाता है। अगली कड़ी में अर्चना होती है; दीप जलाकर गीता या भागवत से श्लोक पढ़ें। अंत में भोग के रूप में हलवा, पायसम या कोई मीठा परोसें। सभी को प्रसन्न देखकर आप अपने घर की समृद्धि को महसूस करेंगे।
तुलसी विवाह सिर्फ एक रीति नहीं, बल्कि परिवार को जोड़ने वाला भावनात्मक बंधन है। यदि आप इस अनुष्ठान को सही समय और विधि से करेंगे तो आपके घर में खुशहाली बरकरार रहेगी। किसी भी सवाल या मदद के लिए हमारे साथ कमेंट करके जुड़ें—समाचार विजेता हमेशा आपका साथ देगा।