निजी नौकरियों में आरक्षण: राज्यों की मुश्किलें बढ़ी

भारत में विभिन्न राज्यों द्वारा निजी क्षेत्र में स्थानीय लोगों के लिए नौकरी आरक्षण की नीतियां बनाई जा रही हैं। इन नीतियों का उद्देश्य स्थानीय बेरोजगार युवाओं को रोजगार के अवसर प्रदान करना है, लेकिन यह कदम कई प्रश्नचिन्ह और चुनौतियां भी खड़े कर रहा है। हरियाणा, कर्नाटक और झारखंड इन मुद्दों का सामना कर रहे हैं।

हरियाणा: आरक्षण कानून असंवैधानिक घोषित

हरियाणा सरकार ने 2020 में एक कानून पारित किया था जिसमें 75% निजी नौकरियों में 30,000 रुपये तक के मासिक वेतन की नौकरियां स्थानीय युवकों के लिए आरक्षित की गई थीं। लेकिन पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने इस कानून को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया है। कोर्ट का मानना था कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन करता है और भारतीय संघीय ढांचे को भी आहत करता है। इस कदम से स्थानीयता आधारित आरक्षण सिद्धांत लागू किया जा रहा है जिसने रोजगार, व्यापार और व्यवसाय के अधिकारों का उल्लंघन किया है। हरियाणा सरकार ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।

कर्नाटक: आईटी उद्योग में आरक्षण की पहल

कर्नाटक की कांग्रेस कैबिनेट ने एक बिल पास किया जिसमें निजी क्षेत्र के कुछ नौकरियों में स्थानीय लोगों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है। यह बिल आईटी उद्योग समेत अन्य निजी नौकरियों पर भी लागू होता है। लेकिन इस कदम ने तत्काल कॉरपोरेट सेक्टर में आलोचना का सामना किया। उद्योग जगत का मानना है कि इससे व्यवसायों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है और आर्थिक विकास में रुकावट आ सकती है।

झारखंड: राजपत्रित सेवाओं में 100% आरक्षण

दिसंबर 2023 में हेमंत सोरेन सरकार ने एक डोमिसाइल बिल पास किया जिसमें क्लास- III और IV सरकारी नौकरियों में 100% आरक्षण स्थानीय लोगों के लिए रखा गया है। हालांकि, राज्यपाल ने इस बिल को यह कहते हुए वापस किया कि यह अनुच्छेद 14 और 16(A) का उल्लंघन करता है। इसके बावजूद, झारखंड सरकार ने बिना किसी बदलाव के बिल को पुनः पास किया है।

निजी नौकरियों में आरक्षण को लेकर विभिन्न राज्यों की पहलें और चुनौतियां भारतीय न्यायपालिका के लिए भी उत्प्रेरक सिद्ध हो रही हैं। संविधान के अनुसार समानता का अधिकार और व्यापार, नौकरी या व्यवसाय का अधिकार ऐसी नीतियों के सामने चुनौती बन रहे हैं। एकतरफ, जहाँ राज्य सरकारें अपने नागरिकों के रोजगार के अवसर बढ़ाने की कोशिश कर रही हैं, वहीं दूसरी तरफ यह कदम कानूनों और व्यवसायिक हितों से टकरा रहे हैं।

20 टिप्पणि

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    divya m.s

    जुलाई 19, 2024 AT 03:37
    ये सब आरक्षण का खेल बस राजनीति का धोखा है। निजी कंपनियां नौकरी देने आई हैं न कि राज्य के निर्देशों की गुलामी करने।
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    Karan Raval

    जुलाई 20, 2024 AT 22:34
    मैं तो समझती हूँ कि स्थानीय युवाओं को मौका चाहिए लेकिन अगर कंपनियां भाग जाएंगी तो फिर किसके लिए नौकरी रह जाएगी? सोचना चाहिए था।

    हरियाणा का फैसला सही था, लेकिन न्यायपालिका ने संविधान की रक्षा की।
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    PRATAP SINGH

    जुलाई 21, 2024 AT 18:37
    आरक्षण का ये नया रूप भारत के उदारीकरण के विरुद्ध है। आप जिस तरह से नौकरी देने का दबाव डाल रहे हैं, वही तो निवेशकों को भगा रहा है।
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    Akash Kumar

    जुलाई 23, 2024 AT 01:08
    संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के अनुसार, राज्य का कोई भी नियम व्यक्ति के जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता। यह एक न्यायिक नियम है, न कि राजनीतिक इच्छा।

    स्थानीय रोजगार की आवश्यकता है, लेकिन इसे संवैधानिक ढांचे के भीतर ही सुलझाना होगा।
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    Shankar V

    जुलाई 24, 2024 AT 09:50
    ये सब एक बड़ी साजिश है। जिन लोगों ने इस बिल को रद्द किया, वो अमेरिकी कंपनियों के लिए काम कर रहे हैं। वो चाहते हैं कि भारतीय युवा बेकार रहे ताकि वे नौकरी के लिए विदेश जाएं।
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    Aashish Goel

    जुलाई 25, 2024 AT 21:38
    मेरा दोस्त बेंगलुरु में एक आईटी कंपनी में काम करता है... और वो कहता है कि अगर आरक्षण लागू हुआ तो उनकी टीम टूट जाएगी... क्योंकि वो तो बिना बेंगलुरु के लोगों के नहीं चल पाती... ये बात सच है या नहीं? कोई बताए? 😅
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    leo rotthier

    जुलाई 26, 2024 AT 19:00
    हमारे देश में आरक्षण की बात तो बहुत पुरानी है लेकिन अब तक किसी ने निजी क्षेत्र को छूने की हिम्मत नहीं की। अब जो राज्य कर रहे हैं वो बहादुर हैं। हमारी जमीन, हमारे बच्चे, हमारी नौकरियां। ये नियम जरूरी हैं।
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    Karan Kundra

    जुलाई 27, 2024 AT 19:24
    मुझे लगता है कि ये सब बहुत ज्यादा भावुक हो गया है। हमें निजी कंपनियों के साथ बातचीत करनी चाहिए, न कि उन्हें बाध्य करना चाहिए। अगर हम उन्हें समझाएं कि स्थानीय युवाओं को नौकरी देना हमारे लिए जरूरी है, तो वो खुद आगे आएंगे।
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    Vinay Vadgama

    जुलाई 28, 2024 AT 00:45
    स्थानीय रोजगार के लिए नीतियां बनाना एक न्यायसंगत लक्ष्य है। लेकिन इसके लिए एक संवैधानिक और व्यावहारिक रास्ता खोजना आवश्यक है। न्यायालय का फैसला निश्चित रूप से एक चेतावनी है।
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    Pushkar Goswamy

    जुलाई 29, 2024 AT 09:08
    क्या आपने कभी सोचा है कि जब एक राज्य ने ऐसा किया तो दूसरे राज्यों को भी ऐसा करना चाहिए? ये एक राष्ट्रीय समस्या है। और अगर हम इसे नहीं सुलझाएंगे तो भारत का भविष्य खतरे में पड़ जाएगा।
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    Abhinav Dang

    जुलाई 31, 2024 AT 00:27
    इस बात पर गहराई से विचार करना चाहिए कि निजी क्षेत्र की विकास योग्यता को राज्य की नीतियों से कैसे समन्वयित किया जा सकता है। एक निर्माणात्मक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें निवेश, रोजगार और सामाजिक न्याय का संतुलन हो।
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    krishna poudel

    अगस्त 1, 2024 AT 05:00
    ये सब बकवास है। जिन लोगों को नौकरी चाहिए वो अपनी क्षमता से पाएंगे। आरक्षण बस बेकारों को बचाने का तरीका है। और हां, अगर कंपनियां भाग गईं तो फिर क्या? उनकी जगह दूसरी कंपनियां आएंगी।
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    Anila Kathi

    अगस्त 2, 2024 AT 11:06
    मुझे लगता है कि ये सब बहुत ज्यादा अतिरंजित हो गया है 😅 अगर हम निजी कंपनियों को निर्देश देंगे तो वो बस अपने ऑफिस बंद कर देंगे... और फिर किसकी गलती होगी? 🤔
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    vasanth kumar

    अगस्त 3, 2024 AT 13:58
    हरियाणा का फैसला गलत नहीं था। संविधान के अनुच्छेद 16 में राज्य को विशेष वर्गों के लिए आरक्षण देने का अधिकार है। लेकिन यहां न्यायालय ने अनुच्छेद 14 का उल्लेख किया। ये बहस तो बहुत पुरानी है।
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    Andalib Ansari

    अगस्त 5, 2024 AT 08:23
    क्या आपने कभी सोचा है कि जब हम एक निजी कंपनी को बाध्य करते हैं कि वह स्थानीय लोगों को ही रखे, तो क्या हम उसकी स्वतंत्रता को नहीं छीन रहे हैं? और अगर वह अपने व्यवसाय को बचाने के लिए दूसरे राज्य में चली जाए, तो फिर वहां के युवाओं का क्या होगा? ये सिर्फ एक राज्य की समस्या नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय दुविधा है।
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    Pooja Shree.k

    अगस्त 5, 2024 AT 17:41
    मुझे लगता है, अगर ये नीतियां असंवैधानिक हैं, तो इन्हें बदलने की जरूरत है। लेकिन इसके बजाय हमें नए तरीके ढूंढने चाहिए। जैसे कि ट्रेनिंग प्रोग्राम, स्थानीय युवाओं के लिए अलग से नौकरियां बनाना।
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    Vasudev Singh

    अगस्त 7, 2024 AT 17:21
    मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूं कि स्थानीय युवाओं को रोजगार का मौका देना बहुत जरूरी है, लेकिन इसका तरीका बहुत अहम है। अगर हम निजी कंपनियों को बाध्य करेंगे तो वे निवेश कम करेंगी, नौकरियां कम होंगी, और फिर बेरोजगारी बढ़ेगी। बेहतर तरीका यह होगा कि सरकार उन कंपनियों को प्रोत्साहन दे, जो स्थानीय युवाओं को रखती हैं। जैसे कि टैक्स छूट, सब्सिडी, या जमीन आवंटन। यह एक ऐसा दृष्टिकोण है जो न्याय और व्यावसायिक स्वतंत्रता दोनों को संतुलित करता है। इस तरह से हम निजी क्षेत्र को अपना साथी बना सकते हैं, न कि दुश्मन।
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    Akshay Srivastava

    अगस्त 8, 2024 AT 16:00
    संविधान का अनुच्छेद 19(1)(g) व्यापार और व्यवसाय का अधिकार प्रदान करता है। यह एक मौलिक अधिकार है। राज्य इसे नियंत्रित नहीं कर सकता। आरक्षण की नीति इसके खिलाफ है। यह न्यायालय का फैसला सही है।
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    Amar Khan

    अगस्त 8, 2024 AT 18:13
    मैं बस इतना कहना चाहता हूं कि ये सब जानबूझकर बनाया गया है। जिन लोगों को नौकरी नहीं मिल रही, वो बस रो रहे हैं। लेकिन जब उनके लिए आरक्षण बना दिया गया, तो अब वो कह रहे हैं कि ये असंवैधानिक है। बस एक बड़ा धोखा है।
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    Roopa Shankar

    अगस्त 9, 2024 AT 11:41
    हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि निजी कंपनियों को निर्देश देने की बजाय हम उन्हें प्रेरित करें। जैसे कि ट्रेनिंग स्कूल बनाना, स्थानीय युवाओं के लिए इंटर्नशिप प्रोग्राम चलाना। इससे वे अपनी क्षमता बढ़ाएंगे, और कंपनियां भी उन्हें रखने के लिए तैयार होंगी।

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