एल.के. आडवाणी: भारतीय राजनीति का एक महत्त्वपूर्ण चेहरा
जब भी भारत के राजनीतिक इतिहास की बात होती है तो एल.के. आडवाणी नाम सुनते ही कई लोग उनके लंबे सफर को याद करते हैं। 1927 में गुजरात में जन्मे, उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी परिवारिक पृष्ठभूमि को आगे बढ़ाते हुए खुद भी राजनीति में कदम रखा।
शुरुआती दौर और कांग्रेस के साथ जुड़ाव
आडवाणी ने अपनी पहली राजनैतिक यात्रा भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस से शुरू की। युवा अवस्था में ही उन्होंने पार्टी के विभिन्न स्तरों पर काम किया, लेकिन 1970‑के दशक में जब देश का राजनीतिक माहौल बदल रहा था तो वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और बायजु पंत सिंह द्वारा स्थापित भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की ओर आकर्षित हुए। इस बदलाव ने उनके करियर को नई दिशा दी।
1977 में, जब जनसंघ‑बाजपेयी गठबंधन सत्ता में आया, आडवाणी को संसद में सीट मिली और धीरे‑धीरे वे पार्टी के मुख्य नेता बनते गए। उन्होंने अपने भाषणों और संगठनात्मक कौशल से भाजपा की आधारशिला मजबूत करने में अहम योगदान दिया।
मुख्य पद और राष्ट्रीय प्रभाव
1998‑2004 तक आडवाणी भारत के उप प्रधानमंत्री तथा विदेश मंत्री रहे। इस दौरान उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर भारत का रुख स्पष्ट किया, विशेषकर पाकिस्तान‑भारत संबंधों में शांति की दिशा में कदम बढ़ाए। उनके ‘कूटनीति’ को अक्सर सराहना मिली, लेकिन कुछ निर्णयों ने देश में विरोध भी उत्पन्न किया।
आडवाणी ने 1999 के कश्मीर संघर्ष में भारत का दृढ़ रुख बनाए रखा और कई बार संसद में विपक्षी दल की आवाज़ को सशक्त बनाया। उनका कहना था कि "देश के हित में हमेशा कठोर कदम उठाने चाहिए" – यह विचार आज भी भाजपा के कई नेताओं द्वारा अपनाया जाता है।
विवादों से दूर नहीं रहे आडवाणी। 1990‑के दशक में ‘हिंदुत्व’ को राजनीतिक मंच पर लाने की उनकी भूमिका ने पार्टी के भीतर और बाहर दोनों ही जगह तनी हुई चर्चा पैदा की। कुछ लोग इसे राष्ट्रीय एकता का साधन मानते हैं, जबकि अन्य इसे विभाजन का कारण कहते हैं।
आज भी उनके नाम से जुड़े कई नीतियों में शैक्षिक सुधार, ग्रामीण विकास और छोटे उद्योगों को समर्थन शामिल है। उन्होंने 1999 के बजट में कृषि ऋण पर ब्याज दर घटाने की पहल की थी, जिससे कई किसानों को राहत मिली। ये छोटे‑छोटे कदम उनकी व्यावहारिक सोच को दर्शाते हैं।
भविष्य की ओर देखते हुए, आडवाणी का प्रभाव पार्टी में युवा नेताओं के लिए प्रेरणा स्रोत बना हुआ है। उनका मानना था कि "इंटरनेट और सामाजिक मंचों पर सक्रिय रहकर ही राजनीति को नई ऊर्जा मिल सकती है" – यह सलाह आज डिजिटल युग में काफी प्रासंगिक लगती है।
संक्षेप में कहा जाए तो एल.के. आडवाणी ने भारतीय राजनैतिक परिदृश्य को कई मोड़ दिया, चाहे वह राष्ट्रीय सुरक्षा हो या सामाजिक मुद्दे। उनके फैसले अक्सर कठिन होते थे, लेकिन उन्होंने हमेशा भारत के दीर्घकालिक हित को प्राथमिकता दी। अगर आप भारतीय राजनीति में गहराई से समझना चाहते हैं तो आडवाणी की कहानी एक जरूरी अध्याय है।