21 सितंबर, 2025 की रात के आखिरी पलों में, भारत के लाखों परिवारों ने अपने पूर्वजों के लिए अंतिम श्राद्ध किया—पितृ पक्ष 2025 का समापन हुआ। यह 16 दिनों का पवित्र समय, जो 7 सितंबर को पूर्णिमा के साथ शुरू हुआ था, अब महालया अमावस्या के साथ समाप्त हो गया। अमावस्या तिथि ठीक 12:16 बजे रात्रि को शुरू हुई और 22 सितंबर की सुबह 1:23 बजे तक रही, जिसके दौरान देशभर में घरों में, नदियों के किनारे, और विशेषकर गया के गंगा घाटों पर श्राद्ध के अनंत रीतियाँ अंजाम हुईं। यह दिन केवल एक अमावस्या नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक संक्रमण का प्रतीक है—जहाँ जीवित और मृत के बीच की दीवार पतली हो जाती है।

पितृ पक्ष का समय और तिथि: एक अत्यंत सटीक अनुसूची

पितृ पक्ष का हर दिन एक तिथि के साथ जुड़ा हुआ है, और इन तिथियों का समय न केवल धार्मिक बल्कि खगोलीय रूप से भी बहुत सटीक है। पितृ पक्ष 2025 का पहला दिन, 7 सितंबर को पूर्णिमा के साथ शुरू हुआ, जब तिथि 1:41 बजे सुबह शुरू हुई और उसी रात 11:38 बजे खत्म हुई। फिर आया तृतीया श्राद्ध (9 सितंबर, 6:28 बजे शाम से), चतुर्थी (10 सितंबर, 3:37 बजे शाम से), पंचमी (11 सितंबर, 12:45 बजे दोपहर से), और अंत में चतुर्दशी श्राद्ध, जो 19 सितंबर की रात 11:36 बजे से 21 सितंबर की सुबह 12:16 बजे तक रही। यहीं पर अमावस्या की शुरुआत हुई—एक ऐसा क्षण जब अनेक परिवारों ने अपने दीर्घ श्राद्ध अनुष्ठान का अंत किया।

महालया अमावस्या: जब सभी पूर्वजों के लिए एक ही श्राद्ध

महालया अमावस्या को सिर्फ एक दिन नहीं, बल्कि एक अवसर माना जाता है—जिस पर वह लोग भी श्राद्ध कर सकते हैं जिन्होंने पिछले 15 दिनों में किसी कारण से यह करने में असमर्थ रहे। इस दिन, कोई भी व्यक्ति अपने किसी भी पूर्वज के लिए श्राद्ध कर सकता है, चाहे उसकी मृत्यु तिथि ज्ञात हो या न हो। महालया अमावस्या के दिन, तीन मुहूर्त विशेष महत्व के हैं: कुतुप मुहूर्त (11:50 बजे दोपहर से 12:38 बजे), रोहिणी मुहूर्त (12:38 बजे से 1:27 बजे), और अपराह्न काल (1:27 बजे से 3:53 बजे तक)। इन समयों में दी गई पिंडदान और तर्पण की आहुति अधिकतम प्रभावशाली मानी जाती हैं।

भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग रीतियाँ, एक ही भावना

यह अनुष्ठान भारत के हर कोने में अलग ढंग से मनाया जाता है, लेकिन उसका भाव एक ही है। उत्तर भारत में, जहाँ अश्विन माह के अनुसार पितृ पक्ष मनाया जाता है, लोग नदियों के किनारे बैठकर जल और तिल के साथ तर्पण करते हैं। दक्षिण भारत में, जहाँ भाद्रपद माह के अनुसार यह अवधि आती है, श्राद्ध के बाद ब्राह्मणों को भोजन देने की परंपरा बहुत मजबूत है। लेकिन सबसे अधिक पवित्र स्थल गया है—जहाँ लाखों श्रद्धालु हर साल आते हैं। गंगा के किनारे बैठकर एक व्यक्ति का श्राद्ध उसके पूरे वंश के लिए पवित्र माना जाता है। कुछ परिवार तो अपने पूर्वजों के नाम लिखकर उनके लिए विशेष जल और अन्न की आहुति देते हैं, जबकि कुछ लोग अपने घरों में ही एक छोटा सा श्राद्ध करते हैं।

पिंड, तिल, और ब्राह्मणों का भोजन: श्राद्ध का गहरा अर्थ

पिंड, तिल, और ब्राह्मणों का भोजन: श्राद्ध का गहरा अर्थ

श्राद्ध का अर्थ सिर्फ भोजन देना नहीं है। यह एक आध्यात्मिक विनिमय है। पिंड (चावल के गोले), तिल (सुनहरे बीज), और जल की आहुति एक संकेत हैं कि जीवित व्यक्ति अपने पूर्वजों को अपने जीवन का हिस्सा बनाए रखता है। ब्राह्मणों को भोजन देना एक विशेष अंग है—इसे अक्सर "ब्राह्मण भोजन" कहा जाता है। इसके अलावा, कुछ लोग गायों, कुत्तों, और गरीबों को भी भोजन देते हैं। यह विचार है कि जिसने अपने पूर्वजों को सम्मान दिया, उसका कर्म उसके वंश के लिए भी शुभ होगा। कई लोग इस दौरान एक अजीब सी शांति महसूस करते हैं—जैसे कोई अनजाना बोझ उतर गया हो।

क्यों यह आज भी मायने रखता है?

आधुनिक दुनिया में, जहाँ जल्दी की दौड़ है, यह अनुष्ठान एक अद्भुत रुकावट है। यह एक अवसर देता है कि हम अपने बारे में सोचें—हम किसके बिना यहाँ हैं? किसके आशीर्वाद से हम जी रहे हैं? यह एक ऐसा समय है जब बेटे अपने दादा की याद में एक फूल रखते हैं, या बहू अपनी सास के लिए एक चावल का पिंड बनाती है। यह कोई पुरानी परंपरा नहीं, बल्कि एक जीवित रिश्ता है—जो दफनाए गए लोगों के नामों से नहीं, बल्कि उनके जीवन के अनुभवों से जुड़ा है।

अगले कदम: क्या होगा अब?

अगले कदम: क्या होगा अब?

पितृ पक्ष के बाद, लोग अपने घरों में शुद्धि के लिए गंगाजल का उपयोग करते हैं, और कुछ विशेष दिनों में फिर से श्राद्ध करने की योजना बनाते हैं। अगला बड़ा अवसर होगा कार्तिक पूर्णिमा—जो अक्टूबर के अंत में आएगा। लेकिन अब तक, लोग अपने घरों में अपने पूर्वजों के नाम लिखकर उनके लिए दीप जलाते हैं। कुछ परिवारों में यह रिवाज बन गया है कि हर रविवार को एक छोटा सा तर्पण किया जाए। यह एक नई आदत बन रही है—जो पुराने समय की भावना को आधुनिक जीवन में जीवित रखती है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

पितृ पक्ष के दौरान क्यों नहीं किया जाता श्राद्ध?

पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है क्योंकि इस समय पूर्वजों की आत्माएँ पृथ्वी पर आती हैं। अन्य समयों में श्राद्ध करना संभव है, लेकिन उसकी प्रभावशीलता कम मानी जाती है। यदि कोई व्यक्ति इस अवधि में श्राद्ध नहीं कर पाता, तो महालया अमावस्या पर उसका अंतिम अवसर होता है।

गया में श्राद्ध क्यों विशेष है?

गया को हिंदू धर्म में पितृ श्राद्ध का सबसे पवित्र स्थान माना जाता है। यहाँ गंगा के किनारे श्राद्ध करने से एक व्यक्ति के पूरे वंश के पूर्वजों को शांति मिलती है। यहाँ के श्राद्ध के लिए विशेष ब्राह्मणों को बुलाया जाता है, जिनके द्वारा पिंडदान और मंत्रोच्चारण की विशिष्ट रीति अपनाई जाती है।

दक्षिण और उत्तर भारत में पितृ पक्ष का अंतर क्या है?

दक्षिण भारत में अमांत कैलेंडर के अनुसार पितृ पक्ष भाद्रपद माह में आता है, जबकि उत्तर भारत में पूर्णिमांत कैलेंडर के अनुसार यह अश्विन माह में आता है। हालाँकि, दोनों क्षेत्रों में श्राद्ध की तिथियाँ लगभग समान ही होती हैं, क्योंकि चंद्रमा के चक्र के अनुसार यह दिन समान होते हैं।

क्या महालया अमावस्या के दिन लूनर इक्लिप्स होता है?

2025 में, महालया अमावस्या के दिन कोई चंद्र ग्रहण नहीं हुआ। हालाँकि, कई लोग इस दिन को ग्रहण से जोड़ देते हैं क्योंकि ग्रहण के समय आत्माओं की यात्रा और भी आसान मानी जाती है। इसलिए, यह एक प्रतीकात्मक जोड़ है—जिसे धार्मिक पाठ्य और लोकप्रिय विश्वास ने बनाया है।

श्राद्ध के लिए क्या भोजन तैयार किया जाता है?

श्राद्ध के लिए आमतौर पर भात, दाल, शक्कर का खीर, दही, चना, और तिल के लड्डू बनाए जाते हैं। कुछ परिवार विशेष रूप से तिल के साथ चावल के गोले (पिंड) बनाते हैं, जिन्हें गंगा जल में डुबोया जाता है। भोजन में कभी भी लहसुन और प्याज नहीं डाले जाते, क्योंकि इन्हें अशुद्ध माना जाता है।

क्या बिना श्राद्ध के पूर्वजों को शांति नहीं मिलती?

धर्मग्रंथों के अनुसार, श्राद्ध एक आध्यात्मिक कर्तव्य है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि बिना इसके पूर्वज दुखी रहते हैं। भावना, सम्मान और याद भी पर्याप्त हैं। श्राद्ध एक बाहरी अभिव्यक्ति है—अंदर की भावना अधिक महत्वपूर्ण है। जिस दिन भी आप अपने पूर्वजों के लिए एक शुद्ध हृदय से ध्यान दें, वही उनके लिए श्रेष्ठ श्राद्ध है।