असमिया संगीत के सितारे को अलविदा

असमिया कला और संस्कृति से जुड़े लोगों के लिए 16 मई, 2025 का दिन एक गहरे शोक का कारण बन गया। लोकप्रिय गायिका गायत्री हजारिका ने अपने जीवन की आखिरी सांस गुवाहाटी के नेमकेयर अस्पताल में दोपहर 2:15 बजे ली, वह पिछले कुछ समय से कोलन कैंसर से जूझ रही थीं। महज 44 साल की उम्र में उनका यूं चले जाना हर संगीत प्रेमी के लिए बड़ा झटका है।

गायत्री हजारिका का नाम असमिया संगीत प्रेमियों के दिल में हमेशा जिंदा रहेगा। उनकी आवाज में एक अलग ही जादू था, जिसने हर वर्ग के लोगों को आकर्षित किया। उनकी सबसे मशहूर धुन ‘सोरा पते पते फागुन नामे’ हर फगुन के मौसम में गाँव-शहर गूंज उठती थी। इस गीत ने उन्हें घर-घर में लोकप्रिय बनाया। यही नहीं, ‘राति राति मोर खून’ और ‘ओहर डोरे उभोटी आतुरी गोला’ जैसे गीतों के जरिए उन्होंने खुद को एक बहुमुखी और गहरी भावनाओं से भरी गायिका के रूप में पेश किया।

संगीत यात्रा, जज्बा और यादों की विरासत

गायत्री ने न सिर्फ फिल्मों के लिए धुनें गाई, बल्कि उनके लाइव कंसर्ट्स में उनकी प्रस्तुति देखकर हर कोई दिवाना हो जाता था। उनके सुरों में वह अपनापन था, जो सीधे दिल तक पहुंचता था। छोटे शहरों से लेकर बड़े मंचों तक उन्होंने असमिया संगीत की खूबसूरती को बखूबी पेश किया। शायद यही वजह है कि आज उनके जाने पर निर्माता ऐमी बरुआ से लेकर संगीतकार जयंत काकोटी तक हर कोई उनकी तारीफों के पुल बांध रहा है।

फिल्मकार ऐमी बरुआ ने गायत्री की आवाज को ‘फागुन की बयार’ कहा, जो हर वसंत के संग मन में गूंजती है। संगीतकार जयंत काकोटी ने उनके निधन को ‘संगीत इंडस्ट्री के लिए कभी न भरने वाली कमी’ कहा और बताया कि इतनी प्रतिभा के बावजूद इतनी जल्दी उन्होंने दुनिया छोड़ दी, ये सोचकर ही दिल भर आता है।

गायत्री हजारिका ने अपने जीवन के आखिरी दिनों में भी अपने संकल्प और जिद को नहीं छोड़ा। अस्पताल में रहते हुए भी संगीत के प्रति उनकी मोहब्बत कम नहीं हुई। उनके फैंस को भरोसा है कि उनकी मिठास भरी आवाज वर्षों तक गूंजती रहेगी। असमिया संस्कृति में उनके योगदान को भुलाना नामुमकिन है। उनके गाने आज भी रेडियो, टीवी और सोशल मीडिया पर जगह-जगह सुने जा सकते हैं।

उनके जज्बे, मेहनत और हुनर की वजह से युवा गायकों के लिए वह हमेशा प्रेरणा रहेंगी। अपने संगीतमय सफर में उन्होंने जिस समर्पण और ईमानदारी के साथ गीतों को निभाया, शायद वही वजह रही कि हर उम्र के लोग उन्हें अपने करीब पाते थे। गायत्री हजारिका अब हमारे बीच नहीं रहीं, लेकिन उनकी सुरीली आवाज ‘सोरा पते पते फागुन नामे’ की तरह लंबे समय तक लोगों की यादों में गूंजती रहेगी।